जीवन का सत्य स्वप्रमाण है। इसकी बुनियाद सूक्ष्म से सूक्ष्मतर के अन्वेषण पर आधारित है। जो सदियों से हमारे ऋषियों-मुनियों तथा संतों की आत्म-अभिव्यक्ति रही है। इसका अन्वेषित प्रारूप समय-समय पर मानव समाज को एक आयाम प्रदान करता रहा है।
‘‘आदर्श कर्म करते हुए ‘स्व’ का अनुभव हो जाना, स्वाभाविकता, समता एवं शांति में जीना ही श्रेष्ठ संन्यास है।’’
चलिए, कबीर के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हैं:
1. कबीर की रहस्यवादी कविता:
कबीर की रचनाओं की खासियत है सरल भाषा में गहन अर्थ छिपा होना। वह आध्यात्मिक सत्यों को ऐसे बोलते हैं जिन्हें आम आदमी भी समझ सके। उनकी कविताओं में प्रतीकों और रूपकों का खूब इस्तेमाल हुआ है।
उदाहरण के लिए, उनकी एक प्रसिद्ध कविता है:
"बुलीं चलीं हंस के पीछे, कबूतर देखीं हंस न देखी।।"
इस कविता में हंस ईश्वर का प्रतीक है और कबूतर सांसारिक सुखों का। कवि कहता है कि लोग अक्सर चमकती चीजों (कबूतर) के पीछे भागते हैं और असली लक्ष्य (हंस) को भूल जाते हैं।
आप कबीर की रचनाओं में से कोई और कविता चुन सकते हैं और हम उसके अर्थ पर चर्चा कर सकते हैं।
2. कबीर का सामाजिक सुधार:
कबीर अपने समय की सामाजिक बुराइयों के खिलाफ खड़े हुए। उन्होंने जाति व्यवस्था का विरोध किया और कहा कि ईश्वर के सामने सब समान हैं। उनके लिए ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता प्रेम और भक्ति था, न कि जाति या कर्मकांड।
उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों की रूढ़ियों की आलोचना की। उनका मानना था कि सच्चा धर्म सार्वभौमिक है, किसी खास धार्मिक ग्रंथ या परंपरा तक सीमित नहीं।
आज के समय में भी कबीर के विचार प्रासंगिक हैं। जाति प्रथा और धार्मिक कट्टरता जैसी समस्याएं आज भी समाज में मौजूद हैं। कबीर हमें सिखाते हैं कि प्रेम और भाईचारे से ही हम एक बेहतर समाज बना सकते हैं।
3. कबीर की जीवन कहानी:
कबीर का जीवन विवादों और रहस्यों से भरा हुआ है। उनके जन्म और पालन-पोषण के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि उनका पालन-पोषण एक मुस्लिम जुलाहे के घर हुआ, जबकि कुछ का मानना है कि उन्हें एक हिंदू दंपत्ति ने गोद लिया था।
कबीर के कई गुरु भी थे, जिनमें हिंदू और मुस्लिम संत दोनों शामिल थे। उन्होंने दोनों धर्मों के सार को ग्रहण किया और अपनी अनूठी आध्यात्मिक परंपरा विकसित की।
कबीर के जीवन की कहानियां हमें उनकी उदारता और सहिष्णुता की सीख देती हैं। ये कहानियां इस बात का भी सबूत हैं कि आध्यात्मिक ज्ञान किसी एक धर्म या परंपरा की सीमा में नहीं बंधा होता।